मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य की न्यायिक व्यवस्था पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि अब भी वहां जातिगत भेदभाव और सामंती मानसिकता का बोलबाला है। कोर्ट ने यह टिप्पणी जिला न्यायाधीशों की कार्य स्थितियों को लेकर की, जिनके साथ व्यवहार को ‘शूद्र’ जैसा बताया गया।
हाईकोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा, "राज्य की न्यायपालिका में अब भी सामंती संबंधों की छाया देखी जा सकती है, जहां उच्च न्यायालय के न्यायाधीश खुद को सामंती स्वामी (feudal lords) और जिला न्यायाधीशों को नौकर (serfs) समझते हैं।"
पीठ ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें जिला न्यायाधीशों के साथ किए जा रहे अनुचित व्यवहार, कार्यभार और अधिकारों की चर्चा की गई थी। अदालत ने यह भी कहा कि यह स्थिति संविधान के उस मूल उद्देश्य के खिलाफ है, जिसमें समानता, सम्मान और न्याय की बात की गई है।
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कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि यदि इस मानसिकता को रोका नहीं गया, तो यह न्यायपालिका की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा के लिए संस्थागत सुधार की आवश्यकता जताई।
यह टिप्पणी भारतीय न्यायपालिका में व्याप्त आंतरिक असमानताओं और पदानुक्रमिक भेदभाव पर सवाल खड़े करती है। यह मामला अब सामाजिक और कानूनी जगत में व्यापक बहस का विषय बनता जा रहा है, जिससे न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और सम्मान की मांग फिर जोर पकड़ रही है।
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