कोलकाता से बाहर, खासकर विदेशों में रहने वाले कोलकातावासी आमतौर पर साल में दो बार अपने शहर लौटते हैं—एक बार दुर्गा पूजा के दौरान और दूसरी बार क्रिसमस पर। हालांकि, इन दोनों यात्राओं का अनुभव अलग-अलग होता है। दुर्गा पूजा के समय लौटना जहां मोहल्ले, परंपराओं और पारिवारिक रस्मों से जुड़ा होता है, वहीं क्रिसमस की छुट्टियां पूरे शहर से दोबारा जुड़ने का अवसर बन जाती हैं।
दिसंबर के महीने में कोलकाता का मौसम सबसे अच्छे रूप में होता है। न तो उमस होती है और न ही अक्टूबर जैसी भारी भीड़, जिससे शहर में घूमना आसान और आनंददायक हो जाता है। यही कारण है कि विदेशों में बसे कोलकातावासी खासतौर पर क्रिसमस के आसपास घर लौटना पसंद करते हैं। इस दौरान शहर की रौनक, सजे हुए बाजार, रोशनी से जगमगाती सड़कें और उत्सव का माहौल अलग ही आकर्षण पैदा करता है।
सर्दियों में मिलने वाली मौसमी मिठाइयाँ और पकवान इस अनुभव को और खास बना देते हैं। मोआ (मुरी से बनी मिठाई), नालेन गुड़ से बनी पारंपरिक मिठाइयाँ, केक और अन्य स्वादिष्ट व्यंजन लोगों को अपने बचपन और यादों से जोड़ देते हैं। एक visiting academic के शब्दों में, “सर्दियों में कोलकाता का आकर्षण ही अलग होता है, इस समय शहर सीधे दिल को छू जाता है।”
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आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी के सांख्यिकी विभाग में रिसर्च असिस्टेंट देबर्शी चक्रवर्ती, जो अमेरिका में रहते हैं, कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति अपने शहर से 10,000 मील दूर रहता हो और साल में सिर्फ एक बार घर आ पाता हो, तो छुट्टियों के मौसम में अपने ही शहर में होने का सुख सबसे बड़ा होता है। दिसंबर में कोलकाता संगीत कार्यक्रमों, मेलों और हाल के वर्षों में छोटे-छोटे मोहल्ला पुस्तक मेलों से भी गुलजार रहता है, जो शहर की सांस्कृतिक आत्मा को और जीवंत बना देता है।
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