दिल्ली उच्च न्यायालय में एक नए न्यायाधीश की नियुक्ति के साथ अब कुल न्यायाधीशों की संख्या बढ़कर 44 हो गई है। हालांकि, अदालत की स्वीकृत अधिकतम क्षमता 60 न्यायाधीशों की है, जिसका अर्थ है कि अभी भी 16 पद खाली हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायाधीशों की कमी के कारण मामलों का निपटारा प्रभावित होता है और लंबित मामलों की संख्या बढ़ती रहती है। दिल्ली हाई कोर्ट देश के सबसे व्यस्त उच्च न्यायालयों में से एक है, जहां प्रतिदिन बड़ी संख्या में याचिकाएं दायर होती हैं। ऐसे में न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने और लंबित मामलों के निपटान में अहम भूमिका निभाती है।
नए नियुक्त न्यायाधीश के शपथ ग्रहण समारोह में न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्य, अधिवक्ता और अन्य न्यायिक अधिकारी मौजूद रहे। मुख्य न्यायाधीश ने इस अवसर पर कहा कि नए न्यायाधीश का अनुभव और दृष्टिकोण अदालत के कामकाज को और अधिक सशक्त बनाएगा।
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अधिवक्ता समुदाय ने इस नियुक्ति का स्वागत करते हुए उम्मीद जताई कि शेष रिक्त पदों को भी जल्द भरा जाएगा। उन्होंने कहा कि पर्याप्त न्यायाधीश होने से न्याय वितरण प्रणाली की कार्यक्षमता में सुधार होगा और आम जनता को समय पर न्याय मिल सकेगा।
कानूनी जानकारों का कहना है कि दिल्ली हाई कोर्ट में न्यायाधीशों की पूर्ण क्षमता तक नियुक्ति होना आवश्यक है, ताकि न्यायपालिका पर बढ़ते बोझ को कम किया जा सके और न्याय की गुणवत्ता तथा गति, दोनों में सुधार हो सके। यह नियुक्ति न्यायपालिका को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
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