दिल्ली में हाल ही में एक छात्र की मौत के बाद स्कूल प्रमुखों ने बच्चों के बदलते स्वभाव और शिक्षकों की भूमिका पर विचार किया। स्कूल प्रमुखों का मानना है कि आज के बच्चे पहले से अधिक संवेदनशील और भावनात्मक रूप से परिपक्व हैं। इसलिए शिक्षकों को सिर्फ मार्गदर्शक या अनुशासन देने वाला नहीं, बल्कि दोस्त और सहयोगी भी होना चाहिए।
मुख्य शिक्षकों का कहना है कि पुराने समय में बच्चों पर केवल कड़ा अनुशासन और डांट-फटकार का असर होता था, लेकिन आज के छात्रों के लिए संवाद और समर्थन अधिक महत्वपूर्ण है। शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने तक सीमित नहीं रह सकते; उन्हें छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों के बढ़ते तनाव और मानसिक दबाव के चलते स्कूलों में संवेदनशीलता और दोस्ताना रवैया आवश्यक हो गया है। छात्र केवल अकादमिक प्रदर्शन से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत विकास और मानसिक स्वास्थ्य से भी प्रभावित होते हैं।
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इस संदर्भ में, दिल्ली के कई स्कूलों ने शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को पुनः शुरू किया है, जिसमें शिक्षक बच्चों से संवाद, उनकी भावनाओं को समझने और समस्या हल करने के तरीकों पर ध्यान दे रहे हैं।
स्कूल प्रमुखों का यह भी कहना है कि माता-पिता और शिक्षक दोनों को मिलकर बच्चों का मार्गदर्शन करना चाहिए। बच्चों के लिए सुरक्षित और सहयोगी वातावरण बनाने के लिए संवाद, समझ और समर्थन सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं।
छात्र की मौत के बाद यह पहल यह दर्शाती है कि शिक्षा संस्थानों में सिर्फ ज्ञान प्रदान करना ही नहीं, बल्कि बच्चों की मानसिक और भावनात्मक भलाई पर भी ध्यान देना अनिवार्य है।
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