लेखक ने अपने पिता की मृत्यु के गहरे शोक में जीवन का वह पक्ष देखा, जो किसी भी पाठ्यपुस्तक में नहीं सिखाया जा सकता। इस अनुभव ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि शिक्षा का असली अर्थ क्या है — क्या यह केवल डिग्रियों और ज्ञान तक सीमित है, या इसमें जीवन के भावनात्मक और मानवीय पहलू भी शामिल हैं?
वे बताते हैं कि जब उन्होंने अपने पिता को खोया, तो उनके भीतर एक गहरा रिक्तपन और असहायता का भाव पैदा हुआ। जीवन के उस कठिन दौर में उन्होंने समझा कि शिक्षा केवल सफलता पाने का साधन नहीं, बल्कि जीवन की जटिलताओं को समझने की शक्ति भी देती है।
शिक्षा ने उन्हें सिखाया कि शोक को दबाने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि यही प्रक्रिया व्यक्ति को अधिक संवेदनशील और सहनशील बनाती है। उन्होंने महसूस किया कि अपने पिता की सीखें — ईमानदारी, मेहनत और दूसरों के प्रति करुणा — अब उनकी शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई हैं।
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लेखक के अनुसार, किसी भी इंसान की शिक्षा तब पूरी होती है जब वह जीवन के कठिनतम क्षणों से सीखना शुरू करता है। किताबों का ज्ञान आवश्यक है, लेकिन जीवन की असली बुद्धि वही है जो दर्द, हानि और आत्मचिंतन से जन्म लेती है।
अंत में वे लिखते हैं कि पिता की याद में बहाए हर आँसू ने उन्हें और अधिक परिपक्व, दयालु और जागरूक इंसान बना दिया — और यही उनके लिए शिक्षा का सच्चा अर्थ है।
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