दो महीने पहले, सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में मानसिक स्वास्थ्य को जीवन के अधिकार का हिस्सा मान्यता दी थी। इस जुलाई के निर्णय में अदालत ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों, कोचिंग सेंटरों और आवासीय शिक्षा संस्थानों में छात्रों के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की अनदेखी एक प्रणालीगत विफलता को दर्शाती है।
हाल ही में, एक IIT छात्र ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और सस्ती और सुलभ मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के लिए मदद मांगी। छात्र का कहना है कि उच्च शिक्षा के दबाव और प्रतियोगिताओं के तनाव के कारण छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं गंभीर रूप ले रही हैं। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि सभी छात्रों के लिए किफायती चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला यह दर्शाता है कि भारत में छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं को अभी भी पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा है। शैक्षणिक संस्थानों में भारी दबाव, परीक्षा की चिंता, और प्रतिस्पर्धी माहौल छात्रों में तनाव, अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं को बढ़ा रहा है।
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अदालत ने पहले भी चेतावनी दी थी कि शिक्षा संस्थानों में छात्रों की भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य जरूरतों को नजरअंदाज करना गंभीर सामाजिक और नैतिक समस्या है। IIT छात्र का यह कदम न्यायिक हस्तक्षेप के जरिए छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करता है।
इस मामले ने सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के सामने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए संरचनात्मक उपाय और सुलभ सेवाओं को कैसे सुनिश्चित किया जाए।
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