दक्षिण एशिया का मोड़: असमानता, अस्थिरता और भारत की नेतृत्व परीक्षा
दक्षिण एशिया असमानता और अस्थिरता के संकट से गुजर रहा है। भारत की नेतृत्व क्षमता और नीतिगत संतुलन पूरे क्षेत्र के भविष्य और स्थिरता को निर्धारित करने में अहम होंगे।
दक्षिण एशिया आज एक ऐसे नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है, जहां आर्थिक असमानता, राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक तनाव लगातार बढ़ रहे हैं। इस पृष्ठभूमि में भारत के सामने क्षेत्रीय नेतृत्व की एक बड़ी परीक्षा खड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में दक्षिण एशिया का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत इन चुनौतियों का सामना कैसे करता है।
क्षेत्र की असमानता तेजी से गहरी हो रही है। अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ने से सामाजिक असंतोष और विरोध प्रदर्शनों की संभावना अधिक हो गई है। कई देशों में बेरोजगारी, महंगाई और बुनियादी सेवाओं की कमी ने जनता के बीच असंतोष को और भड़का दिया है।
इसके साथ ही, राजनीतिक अस्थिरता भी एक गंभीर चिंता का विषय है। नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में लगातार सरकार बदलने और जनआंदोलनों के चलते प्रशासनिक प्रणाली पर दबाव बढ़ा है। इन परिस्थितियों का असर पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और विकास पर पड़ रहा है।
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भारत, जो इस क्षेत्र की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और स्थिर लोकतंत्र है, पर नेतृत्व की जिम्मेदारी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है। भारत से अपेक्षा की जा रही है कि वह न केवल आर्थिक सहयोग बढ़ाए, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने में भी सक्रिय भूमिका निभाए। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को समान विकास मॉडल, क्षेत्रीय साझेदारी और कूटनीतिक संतुलन की रणनीति अपनानी होगी।
यदि भारत इस चुनौतीपूर्ण समय में मजबूत और समावेशी नेतृत्व दिखाता है, तो यह दक्षिण एशिया को अस्थिरता से बाहर निकालने में निर्णायक साबित हो सकता है।