अरावली में नई खनन लीज़ पर केंद्र का प्रतिबंध, संरक्षित क्षेत्र का होगा विस्तार
केंद्र सरकार ने अरावली में नई खनन लीज़ पर प्रतिबंध लगाते हुए संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार का निर्देश दिया है, ताकि पारिस्थितिकी संरक्षण सुनिश्चित हो और अनियंत्रित खनन रोका जा सके।
केंद्र सरकार ने बुधवार (24 दिसंबर, 2025) को अरावली पर्वतमाला में नई खनन लीज़ देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के निर्देश राज्यों को जारी किए। अधिकारियों के अनुसार, यह कदम अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी और भूवैज्ञानिक अखंडता को संरक्षित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) को निर्देश दिया है कि वह पूरे अरावली क्षेत्र में ऐसे अतिरिक्त इलाकों और ज़ोन की पहचान करे, जहां पहले से प्रतिबंधित क्षेत्रों के अलावा भी खनन पर रोक लगाई जानी चाहिए। यह प्रतिबंध पूरे अरावली परिदृश्य में समान रूप से लागू होगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन निर्देशों का उद्देश्य गुजरात से लेकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) तक फैली अरावली पर्वतमाला को एक सतत भूवैज्ञानिक श्रृंखला के रूप में सुरक्षित रखना और अनियंत्रित खनन गतिविधियों पर पूरी तरह लगाम लगाना है। अतिरिक्त क्षेत्रों की पहचान पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और परिदृश्य स्तर के मानकों के आधार पर की जाएगी।
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ICFRE को पूरे अरावली क्षेत्र के लिए सतत खनन हेतु एक व्यापक और विज्ञान-आधारित प्रबंधन योजना (Management Plan for Sustainable Mining – MPSM) तैयार करने का भी निर्देश दिया गया है। इस योजना को व्यापक हितधारक परामर्श के लिए सार्वजनिक किया जाएगा। इसमें पर्यावरणीय प्रभावों का समग्र आकलन, पारिस्थितिक वहन क्षमता का मूल्यांकन, संवेदनशील और संरक्षण-आवश्यक क्षेत्रों की पहचान तथा पुनर्स्थापन और पुनर्वास के उपाय शामिल होंगे।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि पहले से चल रही खनन गतिविधियों को कड़े नियमों के तहत नियंत्रित किया जाएगा ताकि पर्यावरण संरक्षण और सतत खनन मानकों का पालन सुनिश्चित हो सके। अधिकारी ने कहा कि सरकार अरावली पारिस्थितिकी तंत्र के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है, क्योंकि यह क्षेत्र मरुस्थलीकरण रोकने, जैव विविधता संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और पर्यावरणीय सेवाओं में अहम भूमिका निभाता है।
नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की अगुवाई वाली समिति की सिफारिश पर अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की एक समान कानूनी परिभाषा को स्वीकार किया था। इसके तहत, अरावली पहाड़ी को आसपास के क्षेत्र से कम से कम 100 मीटर ऊंचा भू-आकृतिक स्वरूप माना गया है, जबकि दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों का 500 मीटर के भीतर समूह “अरावली रेंज” कहलाएगा।
इस बीच कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इस कदम से बड़े पैमाने पर खनन खुल सकता है और इससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति होगी। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि अरावली हमारी प्राकृतिक धरोहर है और इसके पुनर्स्थापन व संरक्षण की सख्त जरूरत है।
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