भारत ने कहा—वैश्विक प्रदूषण रैंकिंग आधिकारिक नहीं, देश अपने मानक खुद तय करता है
सरकार ने संसद में कहा कि वैश्विक वायु गुणवत्ता रैंकिंग आधिकारिक नहीं होती और WHO दिशानिर्देश केवल सलाहकार हैं। भारत अपने राष्ट्रीय मानक व “स्वच्छ वायु सर्वेक्षण” के आधार पर मूल्यांकन करता है।
भारत सरकार ने गुरुवार (11 दिसंबर 2025) को संसद में कहा कि दुनियाभर में विभिन्न संगठनों द्वारा जारी की जाने वाली वैश्विक वायु गुणवत्ता रैंकिंग किसी भी आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा तैयार नहीं की जाती। पर्यावरण मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देश केवल सलाहकार मूल्य हैं, इन्हें किसी देश पर बाध्यकारी मानक के रूप में लागू नहीं किया जाता।
राज्यसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में सरकार से IQAir की वर्ल्ड एयर क्वालिटी रैंकिंग, WHO ग्लोबल एयर क्वालिटी डेटाबेस, पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) जैसी सूचियों में भारत की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
इस पर पर्यावरण राज्य मंत्री किर्ती वर्धन सिंह ने बताया कि दुनिया में किसी भी आधिकारिक संस्था द्वारा देशों की प्रदूषण रैंकिंग नहीं की जाती। WHO के दिशानिर्देश केवल देशों को यह सुझाव देने के लिए हैं कि वे अपनी भौगोलिक, पर्यावरणीय और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप अपने वायु गुणवत्ता मानक तय करें।
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उन्होंने कहा कि भारत पहले ही 12 प्रदूषकों के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) अधिसूचित कर चुका है, जिनका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा करना है।
मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही कोई वैश्विक आधिकारिक रैंकिंग नहीं होती, लेकिन भारत अपने स्तर पर हर वर्ष "स्वच्छ वायु सर्वेक्षण" आयोजित करता है। यह सर्वेक्षण राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत शामिल 130 शहरों का मूल्यांकन करता है और उन्हें वायु गुणवत्ता सुधार प्रयासों के आधार पर रैंक प्रदान करता है।
सर्वे में बेहतर प्रदर्शन करने वाले शहरों को हर साल 7 सितंबर को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय स्वच्छ वायु दिवस पर सम्मानित किया जाता है।
सरकार का मानना है कि वायु गुणवत्ता से संबंधित आधिकारिक मूल्यांकन देश-विशेष स्थितियों के आधार पर होना चाहिए, न कि गैर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय सूचियों पर।
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