किशोरों की सहमति की वैधानिक आयु पर सुनवाई 12 नवंबर को: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट 12 नवंबर को किशोरों की सहमति की वैधानिक आयु पर सुनवाई करेगा। केंद्र ने 18 वर्ष की सीमा का बचाव करते हुए इसे बच्चों की सुरक्षा हेतु आवश्यक बताया।
सुप्रीम कोर्ट 12 नवंबर को उस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करेगा जिसमें किशोरों की सहमति की वैधानिक आयु को लेकर बहस चल रही है। वर्तमान में सहमति की कानूनी उम्र 18 वर्ष तय है, और केंद्र सरकार ने इस पर अपने रुख का बचाव किया है।
केंद्र ने अदालत में कहा कि 18 वर्ष की आयु तय करना एक “सुनियोजित, गहन विचार-विमर्श और सुसंगत नीति निर्णय” है। सरकार का कहना है कि यह प्रावधान नाबालिगों को शोषण, यौन अपराध और सामाजिक दवाब से बचाने के लिए है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि आज के बदलते सामाजिक संदर्भ में सहमति की आयु पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। उनका कहना है कि किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखना अनुचित है और इससे बड़ी संख्या में युवा आपराधिक मामलों में फँस जाते हैं।
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केंद्र ने हालांकि साफ किया कि कानून में कोई भी ढील बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा के साथ समझौता होगा। सरकार ने यह भी कहा कि किशोरावस्था में मानसिक और शारीरिक परिपक्वता पूरी तरह विकसित नहीं होती, इसलिए कानून का सख्त रहना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह मामला 12 नवंबर को विस्तृत सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला समाज और नीतिगत ढांचे पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।
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