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राजस्थान के धर्मांतरण विरोधी कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के धर्मांतरण विरोधी कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार से जवाब मांगा। याचिकाकर्ताओं ने कानून को मनमाना और असंवैधानिक बताया।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (28 नवंबर 2025) को राजस्थान सरकार से राज्य के नए धर्मांतरण विरोधी कानून Rajasthan Prohibition of Unlawful Conversion of Religion Act, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने इस याचिका को उन लंबित याचिकाओं के साथ टैग कर दिया है जिनमें इसी प्रकार के मुद्दे उठाए गए हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने पक्ष रखा, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसी तरह के कई मामले पहले से ही कोर्ट में लंबित हैं, इसलिए इस याचिका को भी उन्हीं के साथ जोड़ा जाए।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि कानून की कई धाराएं मनमानी, अवैध, तर्कहीन हैं और संविधान के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सहित कई अधिकारों का उल्लंघन करता है।

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17 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को चुनौती देने वाली दूसरी याचिका पर भी राजस्थान सरकार से जवाब मांगा था। इससे पहले 3 नवंबर 2025 को कोर्ट ने ऐसे दो मामलों पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी, जिनमें राजस्थान में लागू धर्मांतरण विरोधी कानून की कई धाराओं पर सवाल उठाए गए थे।

सितंबर में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड और कर्नाटक सहित कई राज्यों की ओर से लागू किए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यों के जवाब आने के बाद ही इन कानूनों के संचालन पर रोक लगाने के अनुरोध पर विचार किया जाएगा।

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