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यौन उत्पीड़न मामले में सहायक प्रोफेसर पर कार्रवाई को दिल्ली उच्च न्यायालय की मंजूरी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को उचित ठहराया। छात्रों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों को “अशोभनीय आचरण” बताया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में यौन उत्पीड़न के मामले में सहायक प्रोफेसर की जबरन सेवानिवृत्ति पर उच्च न्यायालय की मुहर

दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के एक सहायक प्रोफेसर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर विश्वविद्यालय द्वारा की गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्रवाई को वैध करार दिया है। न्यायालय ने यह निर्णय छात्रों द्वारा लगाए गए आरोपों और विश्वविद्यालय की आंतरिक जांच समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर दिया।

न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने कहा कि प्रोफेसर का व्यवहार "अशोभनीय और अनैतिक" था और विश्वविद्यालय की गरिमा तथा छात्रों की सुरक्षा के मानकों का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने इस बात को रेखांकित किया कि प्रोफेसर के आचरण ने एक शिक्षक के रूप में उसके कर्तव्यों का घोर उल्लंघन किया और छात्रों में भय व असहजता का वातावरण पैदा किया।

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छात्रों द्वारा की गई शिकायतों में प्रोफेसर पर अनुचित टिप्पणियाँ करने, निजी बातचीत में आपत्तिजनक भाषा प्रयोग करने और अकादमिक वातावरण को दूषित करने के आरोप लगे थे। विश्वविद्यालय की जांच समिति ने इन आरोपों को प्रथम दृष्टया सत्य पाया, जिसके बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई के अंतर्गत अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई।

प्रोफेसर ने इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने विश्वविद्यालय की प्रक्रिया और निर्णय को न्यायसंगत ठहराते हुए याचिका खारिज कर दी।

इस फैसले को शिक्षा संस्थानों में यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

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