संसद ने नागरिकों के जीवन को आसान बनाने के उद्देश्य से 71 पुराने और अप्रचलित कानूनों को रद्द या संशोधित करने वाला विधेयक पारित कर दिया है। यह विधेयक बुधवार (17 दिसंबर 2025) को राज्यसभा में ध्वनिमत से पारित हुआ। इससे पहले लोकसभा ने मंगलवार (16 दिसंबर 2025) को इसे मंजूरी दी थी।
राज्यसभा में Repealing and Amending Bill, 2025 पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य समय के साथ अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को हटाना, कानून निर्माण की प्रक्रिया में हुई त्रुटियों को सुधारना और कुछ कानूनों में मौजूद भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करना है। उन्होंने कहा कि सरकार ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के साथ-साथ ‘ईज ऑफ लिविंग’ को भी प्राथमिकता दे रही है।
अर्जुन राम मेघवाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता प्रेसीडेंसी में हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन या पारसी द्वारा बनाई गई वसीयत का प्रोबेट अनिवार्य था, जबकि मुसलमानों पर यह नियम लागू नहीं था। उन्होंने कहा कि संविधान धर्म, जाति और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को रोकता है और देश संविधान के अनुसार चलेगा। उन्होंने इन सुधारों को “औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति की दिशा में कदम” बताया।
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हालांकि, कांग्रेस सांसद विवेक के. टांखा ने सरकार के दावे से असहमति जताते हुए कहा कि यह केवल तकनीकी औपचारिकताओं तक सीमित है और जमीनी स्तर पर इसके प्रभाव का आकलन नहीं किया गया है।
यह विधेयक 71 कानूनों को रद्द करता है, जिनमें भारतीय ट्रामवेज अधिनियम, 1886, लेवी शुगर प्राइस इक्वलाइजेशन फंड अधिनियम, 1976 और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड अधिनियम, 1988 शामिल हैं। इसके अलावा चार कानूनों में संशोधन और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में मसौदा त्रुटि को भी ठीक किया गया है।
मंत्री ने बताया कि 2014 के बाद से अब तक 1,577 पुराने कानूनों को रद्द या संशोधित किया जा चुका है।
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