पंजाब हर दो साल में बाढ़ की मार झेल रहा है। 2019 की तबाही, 2023 की बाढ़ और अब 2025 की आपदा ने फिर से हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि को झीलों में बदल दिया है। गांवों की सड़कें, पुल और अन्य ग्रामीण ढांचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पीछे मुख्य कारण नदियों में जमी गाद और बांधों का अपर्याप्त प्रबंधन है। सतलुज, ब्यास और रावी जैसी नदियों की तलहटी में वर्षों से जमा गाद ने उनकी जलधारण क्षमता को काफी घटा दिया है। परिणामस्वरूप, भारी वर्षा या ऊपरी राज्यों से छोड़ा गया पानी नदियों में समाने की बजाय किनारों को तोड़ते हुए खेतों और गांवों में घुस जाता है।
इसके अलावा, पंजाब में बने पुराने बांध और बैराज भी समय-समय पर पानी छोड़ते हैं, लेकिन अचानक छोड़ा गया विशाल जल ग्रामीण इलाकों के लिए विनाशकारी साबित होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि समय रहते गाद निकासी (desilting) और वैज्ञानिक जल प्रबंधन किया जाता, तो बाढ़ की भयावहता को काफी हद तक कम किया जा सकता था।
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किसानों का कहना है कि हर दो साल में बाढ़ से फसलें बर्बाद होती हैं और मुआवजा भी पर्याप्त नहीं मिलता। इससे कृषि पर निर्भर लाखों परिवार आर्थिक तंगी में फंस जाते हैं। वहीं, ग्रामीण ढांचे की मरम्मत में लगने वाला समय और खर्च राज्य की विकास प्रक्रिया को धीमा कर देता है।
अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या पंजाब सरकार और केंद्र सरकार मिलकर गाद निकासी और बांध प्रबंधन पर कोई ठोस नीति बना पाएंगे, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं को रोका जा सके।
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