भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 14 पैसे गिरकर 86.30 पर बंद हुआ। मुद्रा बाजार में इस गिरावट का मुख्य कारण विदेशी निवेशकों की पूंजी निकासी, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और वैश्विक बाजार में डॉलर की मजबूती को माना जा रहा है।
विदेशी मुद्रा डीलरों के अनुसार, घरेलू शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और वैश्विक बाजार में अनिश्चितता के माहौल के बीच डॉलर की मांग में तेजी आई, जिससे रुपया दबाव में रहा। कारोबार के दौरान रुपया 86.12 से 86.35 के दायरे में रहा, लेकिन अंततः यह 86.30 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में सख्ती के संकेतों और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मजबूत आंकड़ों के चलते निवेशक डॉलर की ओर रुख कर रहे हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से आयातकों की डॉलर की मांग बढ़ी, जिससे रुपये पर दबाव और बढ़ गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में भी रुपया अस्थिर बना रह सकता है, खासकर यदि विदेशी निवेश की निकासी और तेल कीमतों में उछाल जारी रहा। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की संभावित हस्तक्षेप नीति रुपये को अत्यधिक गिरने से रोक सकती है।
इस गिरावट के बावजूद भारत की विदेशी मुद्रा भंडार स्थिति फिलहाल संतोषजनक बनी हुई है, जो मुद्रा स्थिरता बनाए रखने में सहायक हो सकती है।