सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के कुछ जजों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करने का आदेश दिया। यह कदम उस मामले के बाद उठाया गया जिसमें ₹1.9 करोड़ के धोखाधड़ी मामले में आरोपी को जमानत दे दी गई थी। शीर्ष न्यायालय ने इस जमानत आदेश को ‘विकृत’ करार दिया और पाया कि जजों ने बाइंडिंग प्रीसिडेंट (साबित पूर्व निर्णयों) को नजरअंदाज किया और मामले के अहम तथ्यों को पूरी तरह नहीं देखा।
कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेश में कानूनी दायरे और स्थापित मानकों की अनदेखी हुई। Bench ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की त्रुटियाँ न केवल न्यायपालिका की विश्वसनीयता को प्रभावित करती हैं, बल्कि आम जनता में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास को भी कमजोर करती हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जजों को न्यायिक प्रशिक्षण और संवैधानिक प्रक्रियाओं के पालन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भविष्य में जमानत और अन्य संवेदनशील मामलों में कानूनी प्रावधानों का सही और निष्पक्ष पालन हो।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश न्यायपालिका में जिम्मेदारी और कानूनी सटीकता को बढ़ावा देगा। इससे जजों को मामलों के निर्णय में पूर्व निर्णयों और सामग्री तथ्यों को नजरअंदाज न करने की चेतावनी भी मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब भारत में वित्तीय अपराधों और धोखाधड़ी के मामलों में जमानत संबंधी आदेशों पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि भविष्य में किसी भी मामले में न्यायिक दृष्टिकोण सही, पारदर्शी और न्यायोचित हो।
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