कर्नाटक के मैसूरु दशहरा उद्घाटन को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को भारतीय संविधान की प्रस्तावना को देखना चाहिए। यह टिप्पणी तब आई जब बानू मुश्ताक को मैसूरु दशहरा उत्सव का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर सवाल उठाए गए थे।
गौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले से जुड़ी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता, जिनमें गौरव नामक व्यक्ति भी शामिल थे, ने दलील दी थी कि बानू मुश्ताक को उद्घाटन का निमंत्रण देना परंपरा और भावनाओं के खिलाफ है। उनका कहना था कि यह कार्यक्रम सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व का है, इसलिए इसका उद्घाटन केवल परंपरागत मान्यताओं के अनुरूप व्यक्तियों द्वारा ही होना चाहिए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों को महत्व न देते हुए साफ कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां किसी भी नागरिक को ऐसे आयोजनों में भाग लेने का अधिकार है। अदालत ने संविधान की प्रस्तावना का हवाला देते हुए बताया कि इसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता की गारंटी दी गई है। इसलिए किसी को केवल धर्म या पहचान के आधार पर ऐसे कार्यक्रमों से बाहर रखना संविधान की मूल भावना के खिलाफ होगा।
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कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह रुख न केवल धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है, बल्कि भारत की विविधतापूर्ण परंपराओं और सामाजिक सद्भाव को भी मजबूती प्रदान करता है।
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