सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और सीजेआई-डिज़ाइनेट जस्टिस सूर्य कांत ने चेतावनी दी है कि भारत “उस पुराने संसार को खोने के जोखिम” में है जिसने मानवता को बनाए रखा। उन्होंने बुज़ुर्गों के प्रति घटती सामाजिक संवेदनशीलता, डिजिटल ठगी, पारिवारिक उपेक्षा और वर्षों तक चलने वाली कानूनी लड़ाइयों को चिंता का विषय बताया। जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि कानून को बुज़ुर्गों के लिए “गरिमा को पुनर्जीवित करने वाला ढांचा” बनना चाहिए।
वे मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीज़न्स (MWPSC) एक्ट पर आयोजित एक विशेष सत्र को संबोधित कर रहे थे, जिसमें केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार और सचिव अमित यादव भी शामिल थे। उन्होंने कहा कि समृद्धि ने निकटता को बदल दिया है, प्रवासन ने रोजगार के नए अवसर खोले लेकिन पीढ़ियों के बीच की दूरी बढ़ा दी। उन्होंने इसे “सभ्यतागत कंपन” बताया।
जस्टिस सूर्य कांत ने याद दिलाया कि भारतीय संस्कृति में बुज़ुर्गों को परिवार की आत्मा माना जाता था, लेकिन आधुनिकता ने इन संरचनाओं को कमजोर किया है। एक 50 वर्षों तक न्याय की लड़ाई लड़ने वाली विधवा के केस का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत उसका अधिकार बहाल किया क्योंकि “गरिमा उम्र के साथ समाप्त नहीं होती”।
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उन्होंने NALSA, राज्य कानूनी सेवाओं, पुलिस और सामाजिक कल्याण तंत्र के बीच मजबूत समन्वय की जरूरत बताई, लेकिन कहा कि किसी संस्था की भूमिका युवाओं की मानवीय जिम्मेदारी की जगह नहीं ले सकती। उन्होंने युवाओं से डिजिटल लेनदेन, दवाई, पेंशन और दैनिक कार्यों में बुज़ुर्गों की मदद करने की अपील की।
केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा कि बुज़ुर्ग हमारे समाज की नींव हैं, लेकिन शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव ने उन्हें अकेला कर दिया है। उन्होंने कहा कि कई बुज़ुर्ग संपत्ति बच्चों को सौंप देते हैं और फिर उपेक्षा झेलते हैं। मंत्री ने समाज में सहानुभूति और संवेदनशीलता बढ़ाने की आवश्यकता बताई।
सचिव अमित यादव ने कहा कि भारत में बुज़ुर्गों की संख्या 2050 तक 34 करोड़ हो जाएगी, इसलिए गरिमा, सुरक्षा और सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करना अनिवार्य है। उन्होंने युवाओं और समाज से जिम्मेदार मानसिकता अपनाने की अपील की।
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