सुप्रीम कोर्ट की एक रिपोर्ट ने न्यायपालिका को अपने प्रशासनिक और औपचारिक भाषा में बदलाव करने की सलाह दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अदालतों में उपयोग की जाने वाली कई पदनाम और शब्द सामाजिक असमानता को बढ़ावा देते हैं और “grammar of inequality” (असमानता की भाषा) को कायम रखते हैं।
रिपोर्ट में ऐसे पदनामों का जिक्र किया गया है जिन्हें तत्काल हटाने की जरूरत है। इनमें शामिल हैं: हलालखोर, साइकिल सवार, धोबी, कूली, स्कैवेंजर, मसालची, मलान, बस्ता बर्दार, चौकीदार, बंडल लिफ्टर। सुप्रीम कोर्ट के सेंट्रल फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग (Centre for Research and Planning) द्वारा तैयार यह रिपोर्ट न्यायपालिका में प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
रिपोर्ट में कहा गया कि इन शब्दों का प्रयोग केवल पेशेवर पहचान के लिए नहीं बल्कि सामाजिक स्तर और जातिगत भेदभाव को दर्शाने वाला माना जाता है। इन पदनामों का उपयोग कर्मचारियों और कोर्ट स्टाफ के बीच असमानता और अपमान को जन्म देता है।
और पढ़ें: बेरूत में हिज़्बुल्लाह के शीर्ष नेता हयथम तबताबाई को निशाना बनाकर इज़राइल का हमला
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि प्रशासनिक भाषा को संवेदनशील, सम्मानजनक और समावेशी बनाया जाए। यह कदम न्यायपालिका के भीतर समानता, सम्मान और आधुनिक प्रशासनिक मानकों के लिए आवश्यक है।
रिपोर्ट न्यायालयिक अधिकारियों और कर्मचारियों को अपने संवाद, रिपोर्ट और दस्तावेज़ों में इन पुराने और अपमानजनक पदनामों का उपयोग बंद करने का निर्देश देती है। इसके साथ ही यह अन्य न्यायिक संस्थानों और सरकारी कार्यालयों के लिए भी मार्गदर्शन का काम करेगी।
और पढ़ें: यूएस समर्थन के लिए कोई कृतज्ञता नहीं: शांति वार्ता के दौरान ट्रंप का यूक्रेन पर हमला