भारत के सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (29 दिसंबर, 2025) को अरावली पहाड़ियों की परिभाषा से जुड़े मामले में अपने पहले दिए गए निर्देशों और नवंबर में सौंपी गई विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। अदालत ने यह कदम इस आशंका के चलते उठाया कि अरावली की संशोधित परिभाषा का गलत अर्थ निकाला जा सकता है, जिससे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित खनन का रास्ता खुल सकता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह भी शामिल थे, ने कहा कि किसी भी रिपोर्ट या अदालती निर्देश को लागू करने से पहले निष्पक्ष, स्वतंत्र और पूरी तरह वस्तुनिष्ठ विशेषज्ञ राय हासिल करना अनिवार्य है। पीठ ने स्पष्ट किया कि पर्यावरण संरक्षण जैसे गंभीर विषयों में किसी भी तरह की अस्पष्टता या जल्दबाजी दूरगामी और नुकसानदेह परिणाम ला सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि अरावली पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र हैं, जो न केवल जैव विविधता को सहारा देती हैं बल्कि भूजल संरक्षण, जलवायु संतुलन और मरुस्थलीकरण रोकने में भी अहम भूमिका निभाती हैं। ऐसे में इन पहाड़ियों की परिभाषा में किसी भी प्रकार का बदलाव अत्यधिक सावधानी और वैज्ञानिक आधार पर ही किया जाना चाहिए।
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पीठ ने कहा कि जब तक एक निष्पक्ष और स्वतंत्र विशेषज्ञ संस्था से पुनः समीक्षा नहीं कराई जाती, तब तक न तो नवंबर की रिपोर्ट लागू की जाएगी और न ही उससे जुड़े किसी निर्देश पर अमल होगा। अदालत का यह रुख पर्यावरणीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने और संभावित दुरुपयोग को रोकने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
इस आदेश के बाद अरावली क्षेत्र में खनन और भूमि उपयोग से जुड़े मामलों पर आगे की कार्रवाई फिलहाल ठहर गई है। अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि नई विशेषज्ञ राय कब और किस रूप में अदालत के समक्ष पेश की जाएगी।
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