संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन देते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को खुद को ही नोबेल शांति पुरस्कार के काबिल बता डाला। ट्रम्प ने दावा किया कि उन्होंने “सात ऐसी जंगें ख़त्म कर दी हैं जिन्हें कोई ख़त्म नहीं कर सकता था,” जिनमें “हजारों लोगों की जानें जा रही थीं।”
ट्रम्प ने कहा, “मैंने सात युद्धों को समाप्त किया। यह सभी उग्र थे और इनमें हज़ारों लोग मारे जा रहे थे। इनमें कंबोडिया-थाईलैंड, कोसोवो-सर्बिया, कांगो-रवांडा, पाकिस्तान-भारत, इज़राइल-ईरान, मिस्र-इथियोपिया और आर्मेनिया-अज़रबैजान शामिल हैं।”
हालांकि, मध्य-पूर्व (गाज़ा) और यूक्रेन युद्ध, जिन पर ट्रम्प ने सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया, आज भी जारी हैं। बावजूद इसके, उन्होंने मंच से इन्हें भी अपनी उपलब्धियों में गिना।
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व्हाइट हाउस ने बीते महीने सात “द्विपक्षीय समझौतों” की सूची जारी की थी, जिन पर ट्रम्प बार-बार शेखी बघारते रहे हैं। विशेषज्ञों और संबंधित देशों ने इनमें से कई दावों पर सवाल उठाए हैं। कुछ संघर्ष तो तब थे ही नहीं जब ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने उन्हें समाप्त किया।
फिर भी, आर्मेनिया-अज़रबैजान जैसे मामलों में ट्रम्प ने नेताओं को व्हाइट हाउस में आमंत्रित कर एक शांति समझौते पर दस्तख़त करवाए। कॉकस क्षेत्र का नग़ोर्नो-काराबाख़ विवाद दशकों से चला आ रहा था।
इसी तरह कंबोडिया-थाईलैंड सीमा विवाद, इज़राइल-ईरान की भिड़ंत, भारत-पाकिस्तान की मुठभेड़, रवांडा-डीआरसी में उथल-पुथल और मिस्र-इथियोपिया के बांध विवाद में भी ट्रम्प ने भूमिका निभाने का दावा किया। मगर इन अधिकांश संघर्षों का समाधान अधूरा है और जमीनी हक़ीक़त कहीं अधिक जटिल है।
आलोचकों का कहना है कि ट्रम्प का दावा ज्यादा राजनीतिक शोर है, व्यावहारिक शांति प्रक्रिया नहीं। इसके बावजूद, पाकिस्तान और कंबोडिया जैसे देशों ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की घोषणा की है।
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