अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू किया गया टैरिफ युद्ध और उससे जुड़ा आर्थिक तनाव दुनिया के लिए चुनौती के साथ-साथ अवसर भी लेकर आया है। विशेषकर ग्लोबल साउथ, जिसमें भारत भी शामिल है, के लिए यह समय वैश्विक भू-आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को पुनर्गठित करने का अवसर माना जा रहा है।
आज की दुनिया कई संकटों से जूझ रही है—आर्थिक अस्थिरता, भू-राजनीतिक संघर्ष और तकनीकी प्रतिस्पर्धा। इन परिस्थितियों में भारत जैसे देशों को रणनीतिक पुनर्संरेखण करने की आवश्यकता है, ताकि वे स्वयं को सुरक्षित कर सकें और एक अधिक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था बनाने में भूमिका निभा सकें।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप की आर्थिक नीतियों के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं। पहला, वे अमेरिका की उस “साइलेंट मेजॉरिटी” को साधने की कोशिश कर रहे हैं, जो वैश्वीकरण से खुद को ठगा हुआ महसूस करती है। वैश्वीकरण की नीतियों ने पूंजी संचय, सस्ते श्रम के शोषण, पर्यावरण पर कब्ज़ा और ट्रिकल-डाउन इकोनॉमिक्स के नाम पर कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथों में धन और शक्ति केंद्रित कर दी है। इससे अमीर-गरीब की खाई बढ़ी है और सामाजिक असमानताएं चरम पर पहुंची हैं।
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इन समस्याओं का समग्र समाधान ढूंढने के बजाय, ट्रंप ने आर्थिक लोकलुभावनवाद की आड़ में नस्लवादी और संकीर्ण राजनीति को बढ़ावा दिया है। यह प्रवृत्ति केवल अमेरिका तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके असर से वैश्विक दक्षिण भी प्रभावित हो रहा है।
भारत के लिए यह जरूरी है कि वह तेजी से कदम उठाकर इस बदलते परिदृश्य में अपनी स्थिति मजबूत करे। न सिर्फ आर्थिक दृष्टि से, बल्कि राजनीतिक और तकनीकी मोर्चों पर भी सक्रिय भूमिका निभाकर भारत अधिक संतुलित और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था की दिशा में नेतृत्व कर सकता है।
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