जम्मू-कश्मीर के मौलवी इरफ़ान अहमद, जिसे जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के व्हाइट कॉलर टेरर मॉडल के मास्टरमाइंड के रूप में गिरफ्तार किया गया है, पढ़े-लिखे युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और उन्हें आतंकवादी नेटवर्क से जोड़ने का काम करता था। जांच एजेंसियों के अनुसार, इरफ़ान अहमद उन लोगों पर कड़ी नजर रखता था जिनमें कट्टरपंथ की संभावना दिखे और उनके ज़रा-से सकारात्मक संकेत पर वह उन्हें तुरंत अपने नेटवर्क में शामिल करने की कोशिश करता था।
हरियाणा के फरीदाबाद में ‘अदृश्य’ व्हाइट कॉलर मॉडल तैयार करने से पहले, उसने डॉक्टर मुज़म्मिल शकील को निशाना बनाया और धीरे-धीरे उसकी सोच को बदलते हुए उसे भर्ती कर लिया। यह रिश्ता पहले डॉक्टर-रोगी का था, लेकिन बाद में आतंक मॉडल में बदल गया।
इरफ़ान के 3 मुख्य तरीके
1. बातचीत करके रिश्ता बनाना:
वह लोगों से लंबी बातचीत करता था और देखता था कि क्या वे इस्लाम और धार्मिक विषयों पर चर्चा में रूचि दिखाते हैं। अगर व्यक्ति खुलापन दिखाता, तो वह उनसे गहरा संबंध बनाकर भर्ती की कोशिश करता था।
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2. सोशल मीडिया की निगरानी:
वह सोशल मीडिया प्रोफाइल स्कैन करता था, ऐसे लोगों को खोजता था जिनमें अलगाववादी या उग्र विचार हों। फिर वह धार्मिक सामग्री भेजकर उनकी सोच को प्रभावित करता था। इसी तरीके से उसने अदील अहमद राथर को निशाना बनाया, जिसकी गिरफ्तारी ने पूरे मॉडल का भंडाफोड़ किया।
3. मस्जिद में आने-जाने वालों पर नज़र:
वह नियमित नमाज़ पढ़ने वालों को संभावित उम्मीदवार मानता था। उनसे बातचीत शुरू कर धीरे-धीरे उन्हें आतंकवादी मॉडल की ओर मोड़ देता था। इसी तरह उसने जासिर बिलाल वानी को भर्ती किया।
जांच में पाकिस्तान कनेक्शन भी सामने आया है। डिजिटल सबूतों से पता चला कि इरफ़ान का संपर्क पाकिस्तान स्थित JeM हैंडलर हंजुल्ला से था। दो एके-सीरीज़ राइफलें भी उसे एक आतंकवादी ने दी थीं — एक मुज़म्मिल के हॉस्पिटल लॉकर से और दूसरी शाहीन सईद की कार से मिली।
सभी आरोपियों, जिसमें आत्मघाती हमलावर उमर उन नबी भी शामिल था, के स्पष्ट रोल थे और उनका मकसद दिल्ली के लाल किले के पास हुए हमले जैसे आतंक हमले करना था, जिसमें 13 लोगों की मौत हुई।
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