पिछले कुछ वर्षों से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) एक अजीब दोहरेपन में जी रहा है। ऊपर से यह किसी जादू जैसा दिखता है—बातचीत करने वाले सिस्टम, तस्वीरें बनाने वाले टूल, ऐसे को-पायलट जो मानो तर्क करने की क्षमता रखते हों। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे उद्यमों (एंटरप्राइज) को एक कहीं ज्यादा गंभीर हकीकत का सामना करना पड़ा है। एआई के भ्रमित करने वाले उत्तर (हैलुसिनेशन), कमजोर और अस्थिर वर्कफ्लो, शासन और अनुपालन से जुड़े जोखिम और ऐसे सिस्टम जो डेमो में तो शानदार काम करते हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर लागू होने पर लड़खड़ा जाते हैं।
हाल ही में स्नोफ्लेक के एआई रिसर्च प्रमुख द्वारक राजगोपाल से हुई बातचीत में सबसे अहम बात न तो अंधा आशावाद था और न ही संदेह, बल्कि परिपक्वता का भाव था। उनके अनुसार, एआई अब अपनी किशोरावस्था से बाहर निकल रहा है और एक अधिक व्यावहारिक, जिम्मेदार और स्थिर चरण में प्रवेश कर रहा है।
राजगोपाल का मानना है कि 2026 में आने वाले बदलाव बड़े और ज्यादा शक्तिशाली मॉडल बनाने से कम और इस बात पर ज्यादा केंद्रित होंगे कि बुद्धिमत्ता को कैसे संरचित किया जाए, उसकी सत्यता कैसे परखी जाए और उसे किस तरह सुरक्षित व प्रभावी ढंग से वितरित किया जाए। इसका अर्थ है कि एआई सिस्टम को भरोसेमंद बनाना, उनके आउटपुट की जांच करना और उन्हें मौजूदा बिजनेस प्रक्रियाओं में टिकाऊ तरीके से जोड़ना अधिक महत्वपूर्ण होगा।
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एंटरप्राइज स्तर पर एआई को अपनाने का अगला चरण केवल नवाचार नहीं, बल्कि अनुशासन, जवाबदेही और स्केलेबिलिटी की मांग करेगा। कंपनियां अब यह समझने लगी हैं कि केवल बड़े मॉडल या आकर्षक फीचर सफलता की गारंटी नहीं है। असली मूल्य तब पैदा होगा जब एआई वास्तविक समस्याओं को हल करे, जोखिमों को कम करे और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भरोसेमंद भागीदार बने।
यदि यह रुझान जारी रहता है, तो 2026 वह साल हो सकता है जब एंटरप्राइज एआई सचमुच अपनी सीमाओं से बाहर निकलकर मुख्यधारा में मजबूती से स्थापित हो जाए।
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