सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 24 नवंबर 2025 को एक याचिका पर विचार करने का निर्णय लिया, जिसमें अनुचित और मनमाने कारावास के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समान और सुव्यवस्थित क्षतिपूर्ति नीति बनाने का अनुरोध किया गया है। यह याचिका ऐसे मामलों के लिए है जिनमें व्यक्ति को कारावास से रिहा किया गया हो या आरोपों से बरी किया गया हो।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। याचिका जावाहरलाल शर्मा द्वारा दायर की गई थी और उनकी ओर से अधिवक्ता नेहा राठी ने पैरवी की। याचिका में सरकार से यह आग्रह किया गया है कि वह ऐसे मामलों में वित्तीय और गैर-वित्तीय राहत के लिए उपयुक्त मानदंड तय करे।
इसमें वित्तीय राहत के साथ-साथ काउंसलिंग, आजीविका सहायता और सामाजिक पुनर्संयोजन जैसी गैर-वित्तीय राहत के उपायों की सिफारिश भी शामिल है। याचिका का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया में हुई देरी और अनुचित कारावास के कारण होने वाले मानसिक, सामाजिक और आर्थिक नुकसान की भरपाई की जा सके।
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पीठ ने इस मामले में सुनवाई की तिथि बाद में तय करने की बात कही है और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि वह इस प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति को लागू करने के लिए क्या कदम उठाएगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह केवल वित्तीय मुआवजे तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज में पुनर्संयोजन और मानसिक स्वास्थ्य समर्थन की दिशा में भी एक मार्गदर्शन देगा।
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