सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (15 दिसंबर 2025) को जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की हिरासत के खिलाफ उनकी पत्नी गीतांजलि जे. आंग्मो द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई 7 जनवरी 2026 तक के लिए स्थगित कर दी। यह मामला न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। पीठ ने समय की कमी का हवाला देते हुए सुनवाई को आगे बढ़ा दिया।
याचिका में सोनम वांगचुक को 26 सितंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत हिरासत में लिए जाने को अवैध और मनमाना बताया गया है। याचिका का दावा है कि यह कार्रवाई उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इससे पहले 24 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई टाल दी थी, जब केंद्र सरकार और लद्दाख प्रशासन की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आंग्मो की प्रत्युत्तर याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा था। वहीं, 29 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने संशोधित याचिका पर केंद्र और लद्दाख प्रशासन से जवाब भी मांगा था।
सोनम वांगचुक को 26 सितंबर को एनएसए के तहत हिरासत में लिया गया था। यह कार्रवाई लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर हुए हिंसक प्रदर्शनों के दो दिन बाद हुई थी, जिनमें चार लोगों की मौत हुई थी और करीब 90 लोग घायल हुए थे। सरकार ने वांगचुक पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया था।
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संशोधित याचिका में कहा गया है कि हिरासत का आदेश पुराने प्राथमिकी मामलों, अस्पष्ट आरोपों और अटकलों पर आधारित है तथा इसका कथित हिरासत के आधारों से कोई प्रत्यक्ष या तात्कालिक संबंध नहीं है। याचिका में इसे संवैधानिक स्वतंत्रताओं और विधिक प्रक्रिया पर सीधा आघात बताते हुए अधिकारों का घोर दुरुपयोग करार दिया गया है।
गीतांजलि आंग्मो ने कहा कि तीन दशकों से अधिक समय से शिक्षा, नवाचार और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाले सोनम वांगचुक को अचानक इस तरह निशाना बनाना पूरी तरह अनुचित है। उन्होंने यह भी कहा कि 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा के लिए वांगचुक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। वांगचुक ने स्वयं सोशल मीडिया पर हिंसा की निंदा की थी और कहा था कि हिंसा से लद्दाख की शांतिपूर्ण लड़ाई विफल हो जाएगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को देश की सुरक्षा के प्रतिकूल गतिविधियों को रोकने के लिए किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने तक हिरासत में रखने का अधिकार है, हालांकि इसे पहले भी रद्द किया जा सकता है।
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