बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुलिस की उस कार्रवाई पर कड़ा रुख अपनाया है, जिसमें डॉक्टरों को नाबालिग लड़कियों के गर्भपात के मामलों में उनकी पहचान उजागर करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। अदालत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार गर्भपात कराने वाली नाबालिगों के नाम या पहचान बताने की कोई बाध्यता नहीं है।
मामला तब सामने आया जब एक स्त्री रोग विशेषज्ञ ने याचिका दायर कर बताया कि पुलिस उन्हें नाबालिग लड़की की गर्भावस्था समाप्त करने के लिए नाम और पहचान उजागर करने का दबाव डाल रही है। डॉक्टर का कहना था कि यह मेडिकल एथिक्स और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पुलिस की इस कार्रवाई पर नाराज़गी व्यक्त की और कहा कि यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि नाबालिग लड़कियों के अधिकारों और गोपनीयता का गंभीर उल्लंघन भी है। अदालत ने टिप्पणी की कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत गर्भपात कराने वाली नाबालिगों की पहचान को पूरी तरह गुप्त रखा जाना चाहिए।
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अदालत ने डॉक्टर को अनुमति दी कि वह बिना लड़की का नाम और पहचान उजागर किए गर्भपात कर सकती हैं। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि इस तरह का दबाव पीड़ित परिवारों को मानसिक आघात पहुंचा सकता है और इससे नाबालिगों को समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाएगी।
हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि भविष्य में इस प्रकार का दबाव न बनाया जाए और मेडिकल प्रोफेशनल्स को उनकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारियों के तहत स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए। इस फैसले का चिकित्सा जगत और बाल अधिकार संगठनों ने स्वागत किया है।
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