36 पूर्व न्यायाधीशों ने शनिवार (20 दिसंबर, 2025) को मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जी. आर. स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग लाने की विपक्षी दलों की पहल की तीखी आलोचना की। उन्होंने सांसदों सहित देशवासियों से इस कदम की स्पष्ट रूप से निंदा करने का आह्वान किया और कहा कि यदि इस तरह के प्रयासों को आगे बढ़ने दिया गया, तो यह लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की जड़ों पर सीधा हमला होगा।
पूर्व न्यायाधीशों ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि यह कदम उन न्यायाधीशों को डराने और दबाव में लाने का “बेशर्म प्रयास” है, जो किसी विशेष राजनीतिक या वैचारिक वर्ग की अपेक्षाओं के अनुरूप फैसले नहीं देते। उन्होंने चेतावनी दी कि इस प्रकार की कार्रवाई से न्यायपालिका की स्वायत्तता कमजोर होगी।
यह विवाद 1 दिसंबर को जस्टिस स्वामीनाथन के उस आदेश के बाद खड़ा हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था कि अरुलमिघु सुब्रमणिया स्वामी मंदिर दीपथून में दीप प्रज्वलन करने के लिए बाध्य है, इसके साथ ही उची पिल्लैयार मंडपम के पास परंपरागत दीप जलाने की व्यवस्था भी जारी रहनी चाहिए। एकल पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि इससे समीप स्थित दरगाह या मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा।
और पढ़ें: चिल्लई-कलां से पहले कश्मीर में बर्फबारी और बारिश की संभावना
इस आदेश के बाद राजनीतिक विवाद गहराया और 9 दिसंबर को डीएमके के नेतृत्व में कई विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को नोटिस देकर न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव लाने की मांग की।
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायाधीश अपने शपथ और भारत के संविधान के प्रति जवाबदेह होते हैं, न कि किसी दलगत दबाव या वैचारिक धमकी के प्रति। उन्होंने जोर दिया कि कानून के शासन वाले गणराज्य में फैसलों की समीक्षा अपील और कानूनी आलोचना के माध्यम से होती है, न कि राजनीतिक असहमति के आधार पर महाभियोग की धमकियों से।
इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कृष्ण मुरारी सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए। बयान में यह भी कहा गया कि यह घटना कोई अलग-थलग मामला नहीं है, बल्कि हाल के वर्षों में न्यायपालिका को बदनाम और डराने की एक चिंताजनक प्रवृत्ति का हिस्सा है।
और पढ़ें: रांची में महिला से दुष्कर्म के आरोप में सेना का जवान गिरफ्तार