पुणे के एक चौंकाने वाले पुराने मामले में 1997 में चार सदस्यीय परिवार की निर्मम हत्या के दोषी ठहराए गए तीन लोगों को अदालत ने बरी कर दिया है। अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। यह फैसला 27 साल पुराने उस मामले में आया है जिसने कभी पूरे महाराष्ट्र को हिला दिया था।
मामले में आरोप था कि तीनों दोषियों ने एक व्यापारी, उसकी पत्नी और दो बच्चों की बेरहमी से हत्या कर दी थी और घर में लूटपाट की थी। उस समय पुलिस ने दावा किया था कि आरोपियों ने पैसों के लालच में यह अपराध किया। निचली अदालत ने तीनों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
हालांकि, अब उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस की जांच में कई गंभीर खामियाँ थीं और सबूतों की श्रृंखला अधूरी थी। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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यह मामला एक बार फिर इस बहस को हवा देता है कि लंबे समय तक चलने वाली न्यायिक प्रक्रिया न केवल आरोपियों के जीवन को प्रभावित करती है बल्कि पीड़ित परिवार को भी न्याय से वंचित रखती है।
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