इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को जातिगत महिमामंडन पर नियंत्रण करने और एफआईआर सहित सभी सार्वजनिक अभिलेखों से जाति संबंधी उल्लेख हटाने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियों और पुलिस को पूरी तरह निष्पक्ष होना चाहिए तथा किसी भी स्तर पर जातिगत झुकाव या भेदभाव की छवि नहीं बननी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में जाति का प्रभाव गहराई तक फैला हुआ है और यह पुलिस की कार्यप्रणाली में भी झलकता है। ऐसे में अगर एफआईआर या अन्य सार्वजनिक दस्तावेजों में जाति का उल्लेख जारी रहेगा तो इससे निष्पक्षता पर सवाल खड़े होंगे। अदालत ने जोर देकर कहा कि “जांच की निष्पक्षता और कानून प्रवर्तन की तटस्थता” को सचेत रूप से विकसित करना आवश्यक है।
हाईकोर्ट ने पुलिस प्रशासन की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि कानून का शासन तभी प्रभावी होगा जब पुलिस किसी भी जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्त होकर कार्रवाई करेगी। न्यायालय ने यह भी माना कि सार्वजनिक जीवन में जातिगत गौरव या महिमामंडन समाज में विभाजन को और गहरा करता है।
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इस आदेश के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार सभी विभागों को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करेगी, ताकि किसी भी आधिकारिक रिकॉर्ड, एफआईआर या अन्य सार्वजनिक कागजात में जाति आधारित पहचान को दर्ज करने की प्रथा समाप्त हो सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम जातिगत भेदभाव और राजनीतिकरण को कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा।
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