गाज़ा में युद्ध से विस्थापित हजारों फिलिस्तीनी अब कब्रिस्तानों में शरण लेने को मजबूर हैं। दक्षिणी शहर खान यूनिस के एक धूल से भरे कब्रिस्तान में मैसा ब्रिकाह अपने चार छोटे बच्चों के साथ पांच महीने से रह रही हैं। लगभग 30 परिवार वहां कब्रों के बीच डेरा डाले हुए हैं।
यहां कब्रों के पत्थर अब मेज़ और कुर्सियां बन चुके हैं, और टेंटों के बीच बच्चे खेलते नज़र आते हैं। मैसा कहती हैं, “शाम होते ही बच्चे डर जाते हैं। उन्हें रात में कुत्तों और कब्रों से डर लगता है।”
दो साल से जारी हमास और इज़राइल के बीच युद्ध ने गाज़ा की दो मिलियन आबादी को बेघर कर दिया है। 10 अक्टूबर को शुरू हुए युद्धविराम के बाद कुछ लोग खंडहरों में लौटे हैं, जबकि बाकी इज़राइल के कब्जे से बाहर छोटे से क्षेत्र में ठुंसे हुए हैं।
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मैसा का घर इज़राइली हमले में नष्ट हो गया था। वे कहती हैं, “अब लौटने की कोई जगह नहीं है, हमारा मोहल्ला सैनिकों के कब्जे में है।”
तीन महीने से इसी कब्रिस्तान में रह रहे मोहम्मद शमह कहते हैं, “मैं बड़ा आदमी हूं, फिर भी रात में कब्रों से डर लगता है।”
उनकी पत्नी हनान शमह कहती हैं, “कब्रिस्तान में रहना डर और बेचैनी से भरा है। हम सो नहीं पाते, लेकिन कहीं और जाने की जगह भी नहीं।”
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इज़राइली सेना ने कई बार कब्रिस्तानों पर बमबारी की है, यह दावा करते हुए कि हमास उन्हें छिपने के लिए उपयोग करता है।
गाज़ा में अब तक 68,800 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, और कई शव अब भी मलबे में दबे हैं।
मोहम्मद कहते हैं, “युद्धविराम के बाद भी मेरी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया—मैं अब भी कब्रिस्तान में हूं।”
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