विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वर्ष 2030 तक वायरल हेपेटाइटिस को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे से समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन भारत में यह लक्ष्य हासिल करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। देश में हेपेटाइटिस के बढ़ते मामलों के बीच समय पर जांच, महंगे डायग्नोस्टिक टेस्ट, सीमित स्क्रीनिंग सुविधाएं और सामाजिक कलंक जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं, जो बीमारी के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर रही हैं।
28 जुलाई को हर साल विश्व हेपेटाइटिस दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इस खतरनाक संक्रमण के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसे खत्म करने के लिए वैश्विक प्रयासों को तेज करना है। यह बीमारी कोविड-19 के बाद दूसरी सबसे घातक संक्रामक बीमारी मानी जाती है। इस साल का थीम ‘हेपेटाइटिस: लेट्स ब्रेक इट डाउन’ है, जो वित्तीय, सामाजिक और प्रणालीगत बाधाओं को खत्म करने का आह्वान करता है, ताकि समय पर जांच, उपचार और रोकथाम सुनिश्चित की जा सके।
भारत में बड़ी संख्या में लोग अभी भी समय पर हेपेटाइटिस की जांच नहीं करा पाते, जिससे संक्रमण गंभीर हो जाता है और लिवर सिरोसिस या कैंसर तक पहुंच सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता बढ़ाने, सस्ती जांच और बेहतर उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराने पर तुरंत ध्यान देना होगा। इसके साथ ही समाज में मौजूद कलंक को खत्म करना भी जरूरी है, ताकि मरीज बिना डर और झिझक के इलाज करा सकें।
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WHO के लक्ष्य को पाने के लिए भारत को राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्क्रीनिंग अभियान चलाना होगा और हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना होगा। केवल इसी तरह 2030 तक वायरल हेपेटाइटिस को सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरे से खत्म किया जा सकता है।
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