पाकिस्तान और अफगान तालिबान गुरुवार (6 नवंबर 2025) को इस्तांबुल में शांति वार्ताओं को फिर से शुरू कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य सीमा पार आतंकवाद के मसले का समाधान करना और दोनों पक्षों के बीच तनाव को और बढ़ने से रोकना है।
11 अक्टूबर को सीमा सैनिकों के बीच हुई झड़पों में दोनों तरफ हताहत हुए थे। पाकिस्तान ने दावा किया कि कम-से-कम 206 अफगान तालिबानी और 110 तेहरिक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के ऑपरेटर मारे गए, जबकि उसे 23 सैनिकों का नुकसान हुआ। इसके बाद 15 अक्टूबर को दोनों पक्षों ने संघर्षविराम पर सहमति जताई थी, जिसे दो राउंड की वार्ताओं (19 अक्टूबर-दोहा और 25 अक्टूबर-इस्तांबुल) के दौरान बढ़ाया गया। अस्थायी संघर्षविराम बरकरार है, पर सोशल मीडिया और दोनों तरफ के बयानों में वैमनस्य स्पष्ट दिखता है।
इस्तांबुल में तीसरे राउंड की वार्ता टलने लगी थी, लेकिन तुर्की ने स्थिति को संभाला और कतर के साथ मिलकर तुर्की ने नया राउंड कराने पर सहमति दिलवाई। पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल ईंटेलिजेंस प्रमुख व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मालिक के नेतृत्व में भेजा गया है, जिसमें सेना, खुफिया एजेंसियों और विदेश कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। अफगान तालिबान की ओर से खुफिया निदेशालय के प्रमुख अब्दुल हक वसीक, उप-आंतरिक मंत्री रहमतुल्लाह नजीब, प्रवक्ता सुहैल शाहीन, अनस हक्कानी, क़ाहिर बल्खी, ज़कीर जलाली और अनकारा में अफगान चार्ज डि’फ़ेरेस मौजूद हैं। वार्ता दो दिनों तक चलने की संभावना है।
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तुर्की के विदेशी मंत्रालय ने पिछली बैठक के बाद कहा था कि सभी पक्ष “संघर्षविराम की लंबी अवधि” और एक निगरानी-तंत्री (monitoring & verification mechanism) स्थापित करने पर सहमत हुए हैं, ताकि शांति बनायी जा सके और उल्लंघन करने वाले पक्ष को दंडित किया जा सके। पाकिस्तान की नीतिगत स्थिति स्पष्ट रही है — अफगान माहौल का इस्तेमाल उसके ख़िलाफ़ आतंकवाद के लिए न हो।
सप्ताह की शुरुआत में पाकिस्तान के सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरिफ चौधरी ने काबुल पर टीटीपी लड़ाकों को शरण देने का आरोप लगाया और कहा कि यदि वार्ता से समाधान नहीं हुआ तो पाकिस्तान कार्रवाई का अधिकार सुरक्षित रखेगा।
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