अमेठी, उत्तर प्रदेश स्थित इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRRPL) संयंत्र में निर्मित AK-203 असॉल्ट राइफल 2025 के अंत तक 100% स्वदेशी बन जाएगी। पूरी तरह स्वदेशीकरण के बाद इसका नया नाम 'शेर' रखा जाएगा। भारतीय सेना को अब तक 48,000 राइफलें मिल चुकी हैं, और 15 अगस्त तक 7,000 और राइफलें सौंपी जाएंगी। साल के अंत तक यह संख्या बढ़कर 70,000 हो जाएगी।
फिलहाल, अमेठी संयंत्र में बन रही राइफलें 50% तक स्वदेशी हैं। तकनीक हस्तांतरण की प्रक्रिया 2024 में पूरी हो चुकी है। IRRPL के चेयरमैन एवं मैनेजिंग डायरेक्टर मेजर जनरल एस.के. शर्मा के अनुसार, “IRRPL और रक्षा मंत्रालय के बीच हुए समझौते के तहत 10 वर्षों में 6,01,427 AK-203 राइफलें बनाई जानी हैं। पहले दो वर्ष तकनीक आत्मसात करने में लगे। 2025 के बाद हम हर साल लगभग 70,000 राइफलें बनाने की योजना में हैं।”
AK-203 राइफल 7.62x39 मिमी कारतूस के लिए डिजाइन की गई है और AK प्लेटफॉर्म की प्रसिद्ध मजबूती को आधुनिक युद्ध कौशल के अनुरूप अपग्रेड्स के साथ जोड़ा गया है। यह राइफल विभिन्न परिस्थितियों में बहुपरती प्रदर्शन के लिए ऑटोमैटिक (700 राउंड प्रति मिनट) और सिंगल-शॉट मोड में फायर कर सकती है। इसमें फोल्डिंग बटस्टॉक, एर्गोनोमिक फोरग्रिप और टैक्टिकल थ्री-पॉइंट स्लिंग मौजूद है, जिससे सैनिकों को बेहतर गतिशीलता मिलती है।
इसके अलावा, राइफल में फुल-लेंथ पिकाटिनी रेल्स और अंडर-बैरेल ग्रेनेड लॉन्चर भी लगे हैं, जो इसे मिशन-विशिष्ट हथियार प्रणाली में बदलते हैं। यह हथियार 800 मीटर तक के लक्ष्य को भेदने में सक्षम है, जबकि इसकी बैटल साइट रेंज 350 मीटर है। 30 राउंड की हाई-कैपेसिटी मैगजीन और 3.6 किलोग्राम के हल्के वजन के कारण यह एक कुशल और सुविधाजनक हथियार बनता है।
अब तक राइफल के प्रदर्शन में किसी तरह की समस्या सामने नहीं आई है। IRRPL के अधिकारियों के मुताबिक, इसकी विश्वसनीयता का श्रेय डिज़ाइन की कठोरता, उच्च गुणवत्ता नियंत्रण और संयंत्र में की जाने वाली परीक्षण प्रक्रिया को जाता है। हर राइफल को 120 से अधिक मापदंडों पर परखा जाता है और संयंत्र की रेंज पर 63 राउंड फायरिंग के साथ इसका परीक्षण किया जाता है।
मेजर जनरल शर्मा ने यह भी कहा, “हमने 2032 तक आपूर्ति पूरी करने का लक्ष्य रखा है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि हम इसे 2030 तक ही पूरा कर लेंगे। कई अन्य सुरक्षा एजेंसियों और देशों से भी इन राइफलों की मांग आई है। हम इन अनुरोधों का मूल्यांकन करेंगे और भारत-रूस दोनों के अनुकूल देशों को आपूर्ति की योजना बना रहे हैं।”
फिलहाल, ये राइफलें वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और नियंत्रण रेखा (LoC) पर तैनात भारतीय जवानों के पास हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी प्रदर्शन क्षमता और उत्पादन क्षमता को देखते हुए, AK-203 जल्द ही भारतीय सेना की अग्रिम पंक्ति का प्रमुख हथियार बन जाएगी।