बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन ने कुल 243 सीटों पर 253 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसका मतलब है कि गठबंधन ने दस सीटों के लिए अतिरिक्त उम्मीदवार भी खड़े किए हैं। छोटे सहयोगी दलों ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस और राजद ने वार्ता अंतिम क्षण तक खींची, जिससे अन्य दलों के लिए सीटों का विकल्प सीमित रह गया।
इस बार पांच सीटों—वैशाली, नरकटियागंज, सिकंदरगढ़, कहलगांव और सुल्तानगंज—पर कांग्रेस और राजद के उम्मीदवार आमने-सामने हैं। चुनावी मैदान में यह टकराव महागठबंधन के भीतर समीकरणों की जटिलता को भी दर्शाता है।
इसी बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुजफ्फरपुर जिले में अपने चुनाव अभियान के दौरान विवाद खड़ा किया। मिनापुर और कांटी विधानसभा क्षेत्रों में आयोजित रैलियों में जब उन्होंने भाजपा उम्मीदवार रामा निषाद को फूल माला पहनाकर सम्मानित किया, तो राजसभा सदस्य और अपनी पार्टी के नेता संजय झा ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। इसके चलते मंच पर दोनों के बीच शब्दों की बहस हुई।
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राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में वंशवाद लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर रहा है। इसके बावजूद, अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल अपने परिवार और नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट बांटने से नहीं चूक रहे हैं। विभिन्न पार्टियों में नेताओं के बेटे, बेटियां, पत्नियां, बहुएं, दामाद और भतीजे चुनावी मैदान में सक्रिय हैं।
इस प्रकार, बिहार विधानसभा चुनाव न केवल राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बल्कि गठबंधन समीकरण और पारिवारिक राजनीति की गहन झलक भी दिखा रहा है।
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