बिहार सरकार में ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के वरिष्ठ नेता अशोक चौधरी की सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति को उनकी ही सरकार ने फिलहाल रोक दिया है। यह निर्णय उनके नाम के अलग-अलग रूपों (स्पेलिंग/वेरिएशन) में पाई गई विसंगति के कारण लिया गया है। यह जानकारी The Indian Witness को सूत्रों के हवाले से मिली है।
57 वर्षीय अशोक चौधरी पिछले वर्ष जून में राजनीति विज्ञान (पॉलिटिकल साइंस) के सहायक प्रोफेसर पद के लिए हुए साक्षात्कार में सफल होने वाले 274 उम्मीदवारों में शामिल थे। यह साक्षात्कार बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (BSUSC) द्वारा इस पद के लिए विज्ञापन जारी किए जाने के लगभग पांच साल बाद आयोजित किया गया था। लंबे इंतजार के बाद चयन प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद चौधरी की नियुक्ति अब तक अधर में लटकी हुई है।
सूत्रों के अनुसार, नियुक्ति पर रोक का मुख्य कारण उनके नाम में दर्ज अलग-अलग रूप हैं। सरकारी दस्तावेजों और आवेदन से जुड़े रिकॉर्ड में नाम की एक से अधिक प्रविष्टियां पाई गईं, जिससे प्रशासनिक स्तर पर सवाल खड़े हो गए। इसी विसंगति को आधार बनाकर सरकार ने उनकी नियुक्ति को फिलहाल रोकने का फैसला किया है।
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यह मामला इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि अशोक चौधरी वर्तमान में बिहार सरकार में मंत्री हैं और उनकी नियुक्ति को उन्हीं की सरकार द्वारा रोका गया है। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि यह प्रशासनिक अव्यवस्था और प्रक्रियात्मक खामियों को उजागर करता है। वहीं, कुछ राजनीतिक हलकों में इसे अनावश्यक तकनीकी अड़चन बताया जा रहा है।
शिक्षा जगत में भी इस फैसले को लेकर बहस तेज है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि चयन प्रक्रिया में उम्मीदवार सफल घोषित हो चुका है, तो नाम से जुड़ी विसंगतियों को समय रहते स्पष्ट किया जाना चाहिए था। फिलहाल, यह देखना होगा कि सरकार इस मुद्दे को कैसे सुलझाती है और क्या अशोक चौधरी की नियुक्ति को आगे मंजूरी मिलती है या नहीं।
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