बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठी टेलीविजन चैनल के प्रोग्रामिंग प्रमुखों और मीडिया अधिकारियों के खिलाफ दर्ज 12 साल पुराने एफआईआर को रद्द कर दिया है। यह मामला एक टीवी धारावाहिक में कथित तौर पर अनुसूचित जाति समुदाय का अपमान करने वाले संवाद से जुड़ा था। अदालत ने कहा कि संबंधित अधिकारियों की उस संवाद की रचना या प्रस्तुति में कोई भूमिका नहीं थी।
यह मामला धारावाहिक ‘लक्ष्मी वर्सेस सरस्वती’ के एक एपिसोड से जुड़ा था, जिसमें कथित तौर पर अनुसूचित जाति समुदाय के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। इस संबंध में 2013 में महाराष्ट्र के ठाणे जिले के वाडा पुलिस स्टेशन में राहुल गायकवाड़ नामक व्यक्ति की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी।
शिकायत के अनुसार, 22 अगस्त 2012 को प्रसारित एक एपिसोड में एक पात्र ने “बुरी नजर” से बचाने के संदर्भ में “महार-पोरांची” शब्द का प्रयोग किया था। आरोप लगाया गया कि यह शब्द महार समुदाय, जो कि अनुसूचित जाति में आता है, को अपमानित करने के इरादे से इस्तेमाल किया गया।
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याचिकाकर्ताओं, जिनमें ‘स्टार प्रवाह’ के प्रोग्रामिंग हेड और स्टार एंटरटेनमेंट मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के अधिकारी शामिल थे, ने दलील दी कि वे कंटेंट के रचनाकार नहीं थे और संवाद की अदायगी में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने कहा कि यह संवाद अभिनेता द्वारा अचानक बोला गया था।
न्यायमूर्ति मनीष पिताले और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक कार्रवाई के लिए सख्त और स्पष्ट शर्तों का पूरा होना आवश्यक है। अदालत ने यह भी कहा कि एफआईआर में यह तक स्पष्ट नहीं किया गया कि आरोपी अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्य नहीं हैं, जो कि इस कानून के तहत जरूरी है।
हाईकोर्ट ने यह भी माना कि चैनल और उसके अधिकारियों की संवाद को अंतिम रूप देने में कोई भूमिका नहीं थी। चैनल द्वारा दिखाया गया अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) भी उनके पक्ष में गया। इसके आधार पर अदालत ने एफआईआर को रद्द कर दिया।
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