कांग्रेस पार्टी इस समय गहरे वैचारिक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है। पार्टी के भीतर तीन धाराएं सक्रिय हैं—पुरानी नेहरूवादी समाजवादी-धर्मनिरपेक्ष सोच, 1991 की एलपीजी (उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण) विचारधारा, और तीसरी वह मानसिकता जो नागरिक समाज की स्वतंत्र भूमिका, नैतिकता, क्षमता निर्माण और न्यायसंगत सार्वजनिक सिद्धांतों पर आधारित है।
नागरिक समाज आधारित यह विचारधारा सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए दौर में उभरी थी, पर आज राहुल गांधी के आसपास इसका प्रभाव सबसे अधिक दिखाई दे रहा है। इस समूह को ‘जय जगत’ कहा जाता है, जिसके सदस्य साधारण जीवन, सादगी और न्यूनतावाद को बढ़ावा देते हैं, हालांकि पार्टी के कई पुराने नेता इसे केवल दिखावा बताते हैं।
राहुल गांधी के साथ ‘डाइट कोक’ और साइकिल से दफ्तर आने जैसे किस्से पार्टी में चर्चा का विषय बने हैं। यह समूह संगठन में कई महत्वपूर्ण पदों पर काबिज है और अब संगठन महासचिव जैसे ऊंचे पदों पर नजरें गड़ाए बैठा है।
शशिकांत सेंटिल का उभार
पूर्व IAS अधिकारी शशिकांत सेंटिल का कांग्रेस में तेज़ी से उभरना इस नए बदलाव का प्रतीक है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने और CAA के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दिया था। आज वे कांग्रेस के केंद्रीय वार रूम का नेतृत्व कर रहे हैं और कर्नाटक, राजस्थान तथा तेलंगाना चुनावों में उनकी रणनीति की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है।
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कांग्रेस की वैचारिक उलझन
2014 के बाद लगातार चुनावी हार ने कांग्रेस की विचारधारा को कमजोर किया है। नेहरू और गांधी की धर्म और राजनीति पर अलग-अलग सोच आज भी पार्टी के लिए चुनौती बनी हुई है।
इंदिरा गांधी से लेकर नरसिंह राव के दौर तक कांग्रेस का ‘प्रो-हिंदू’ रुझान भी समय-समय पर सामने आता रहा है।
मोदी युग में बढ़ती वैचारिक बहसों के बीच ‘जय जगत’ समूह का उदय पार्टी नेतृत्व के लिए कई कठिन प्रश्नों से बचने का आसान रास्ता भी माना जा रहा है।
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