तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ’ब्रायन ने शुक्रवार (31 अक्टूबर 2025) को उन विधेयकों की आलोचना की जिनमें प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर पद से हटाने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि ये विधेयक लोकतंत्र की मूल भावना को कमजोर करते हैं और “निर्दोषता की धारणा” को खत्म कर देते हैं।
अपने ब्लॉगपोस्ट में ओ’ब्रायन ने कहा कि ये विधेयक जवाबदेही के नाम पर शासन को अस्थिर करने, राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने और न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार करने का रास्ता खोलते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यह कानून “गिरफ्तारी को राजनीतिक हथियार” बना सकता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था का मूल सिद्धांत “दोष सिद्ध होने तक निर्दोष” है, लेकिन यह बिल उस सिद्धांत को उलट देता है। यह बिना मुकदमे या सजा के किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को पद से हटाने जैसा है, जो अनुच्छेद 21 की भावना के खिलाफ है।
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टीएमसी नेता ने कहा कि भारत की जेलों में लगभग 75% कैदी अंडरट्रायल हैं। अगर यह कानून लागू होता, तो 2014 के बाद गिरफ्तार हुए कई विपक्षी मंत्रियों की सीटें स्वतः समाप्त हो जातीं। उन्होंने सवाल किया कि “30 दिन की सीमा क्यों तय की गई”, जबकि डिफॉल्ट जमानत की अवधि 60 या 90 दिन है।
ओ’ब्रायन ने कहा कि यह बिल शासन को ठप करने और निर्वाचित सरकारों को अस्थिर करने का खतरा पैदा करेगा। “राजनीति में जवाबदेही सजा पर आधारित होनी चाहिए, हिरासत पर नहीं,”।
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