सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिजली एक ‘सार्वजनिक वस्तु’ है और इसे ‘अनावश्यक राजनीतिक दबाव’ से प्रभावित नहीं होना चाहिए। न्यायालय ने यह टिप्पणी बिजली नियामक आयोगों (Electricity Regulatory Commissions) की स्वायत्तता और उनके पावर टैरिफ तय करने के विशेषाधिकार को लेकर उठ रहे सवालों के संदर्भ में की है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिजली की आपूर्ति और उसके दामों का निर्धारण एक संवेदनशील विषय है, जो सीधे जनता के जीवन से जुड़ा हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। बिजली नियामक आयोगों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहकर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है, ताकि उपभोक्ताओं को उचित और पारदर्शी दरें मिल सकें।
इस फैसले में न्यायालय ने यह भी कहा कि बिजली को केवल व्यापार या राजनीतिक लाभ के साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इसे एक सार्वजनिक सेवा के रूप में सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिससे समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ मिले।
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हालांकि, इस फैसले के बाद बिजली नियामक आयोगों की स्वायत्तता और राजनीतिक दबाव से उनकी स्वतंत्रता पर नई बहस शुरू हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस निर्णय से आयोगों को अपने निर्णयों में और भी अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही बरतनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह भी संकेत मिलता है कि सरकारों और राजनीतिक दलों को बिजली नीति और टैरिफ निर्धारण में अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए। इस दिशा में पारदर्शिता और न्यायसंगत निर्णय प्रक्रिया को बढ़ावा देना आवश्यक है।
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