हिमाचल प्रदेश इस साल भीषण मॉनसून आपदा का सामना कर रहा है। राज्य में लगातार भारी बारिश ने बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा कर दी है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, अब तक ₹4,079 करोड़ का भारी आर्थिक नुकसान दर्ज किया गया है।
राज्य आपदा प्रबंधन विभाग की रिपोर्ट बताती है कि सैकड़ों सड़कें, पुल और इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं। कई गांवों का संपर्क कट गया है और लोग सुरक्षित स्थानों पर शरण लेने को मजबूर हुए हैं। कृषि क्षेत्र भी गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है, जिससे हजारों किसानों की फसलें बर्बाद हो गईं।
भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ ने न केवल आम जनता की परेशानी बढ़ाई है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी खतरा उत्पन्न कर दिया है। कई पर्यटन स्थलों तक जाने वाले मार्ग बंद कर दिए गए हैं। इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को दोहरी मार पड़ी है, क्योंकि पर्यटन हिमाचल का प्रमुख राजस्व स्रोत है।
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राज्य सरकार ने राहत और बचाव कार्य तेज करने के निर्देश दिए हैं। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें प्रभावित इलाकों में तैनात की गई हैं। हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है और राहत शिविरों में भोजन व चिकित्सा की सुविधा दी जा रही है।
मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार से वित्तीय मदद की अपील की है और कहा है कि राज्य को इस आपदा से उबारने के लिए विशेष पैकेज की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियां इस तबाही को और गंभीर बना रही हैं।
हिमाचल की यह आपदा एक बार फिर चेतावनी देती है कि पर्वतीय राज्यों में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन आवश्यक है।
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