आईआईटी बॉम्बे के एक नए अध्ययन में गहरे समुद्री जल (डीप सी वाटर) का उपयोग करके डेटा सेंटर्स को ठंडा करने की अभिनव तकनीक पेश की गई है। शोध में पाया गया है कि इस पद्धति से ऊर्जा खपत में 79% तक कमी लाई जा सकती है और कार्बन उत्सर्जन को भी बड़े पैमाने पर घटाया जा सकता है। यह पारंपरिक एयर-कूलिंग और रेफ्रिजरेंट सिस्टम की तुलना में तेज, सस्ता और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प साबित हो सकता है।
अध्ययन के अनुसार, समुद्र की गहराई में मौजूद ठंडे पानी का इस्तेमाल सीधे डेटा सेंटर के तापमान को नियंत्रित करने में किया जा सकता है। इससे न केवल बिजली की खपत कम होगी बल्कि रेफ्रिजरेंट गैसों के उपयोग में भी भारी कमी आएगी, जो वैश्विक तापन (ग्लोबल वार्मिंग) में योगदान देती हैं।
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं का कहना है कि जैसे-जैसे डिजिटल डेटा और क्लाउड सेवाओं की मांग बढ़ रही है, डेटा सेंटर की ऊर्जा खपत भी तेजी से बढ़ रही है। वर्तमान में, वैश्विक स्तर पर डेटा सेंटर बिजली खपत के बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में यह समाधान पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकता है।
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शोध टीम ने यह भी सुझाव दिया कि भारत जैसे समुद्र तटीय देशों में इस तकनीक को अपनाना आसान है, क्योंकि वहां गहरे समुद्री जल तक पहुंच उपलब्ध है। भविष्य में इस प्रणाली को बड़े पैमाने पर लागू करने से ग्रीन डेटा सेंटर की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
यह अध्ययन दर्शाता है कि यदि सरकार और निजी कंपनियां मिलकर निवेश करें, तो यह तकनीक जल्द ही व्यावसायिक रूप से उपयोग में लाई जा सकती है।
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