भारत का 99 अरब डॉलर का व्यापार घाटा अब आर्थिक नीति निर्माताओं और उद्योग जगत के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। यह घाटा केवल आयात-निर्यात के असंतुलन का संकेत नहीं देता, बल्कि यह दर्शाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को निर्यात क्षमता बढ़ाने और आयात निर्भरता कम करने के लिए गहन संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सोने का बढ़ता आयात व्यापार घाटे का प्रमुख कारण है। दूसरी ओर, निर्माण और उच्च मूल्य वाले निर्यात क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता अभी भी सीमित है। हालांकि सेवा क्षेत्र विशेष रूप से आईटी और डिजिटल सेवाओं में भारत का प्रदर्शन मजबूत है, लेकिन यह माल व्यापार घाटे की भरपाई करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
सरकार ने हाल के वर्षों में मेक इन इंडिया, पीएलआई (उत्पादन आधारित प्रोत्साहन) योजनाओं और निर्यात प्रोत्साहन कार्यक्रमों के माध्यम से निर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि लॉजिस्टिक्स सुधार, आपूर्ति श्रृंखला सुदृढ़ीकरण और उच्च कौशल प्रशिक्षण पर अधिक जोर दिए बिना निर्यात में तेज वृद्धि संभव नहीं होगी।
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इसके अतिरिक्त, वैश्विक मांग में उतार-चढ़ाव और भू-राजनीतिक तनाव भारत के निर्यात प्रदर्शन को प्रभावित कर रहे हैं। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि व्यापार घाटा सिर्फ आँकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि यह दीर्घकालिक विकास रणनीति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत की स्थिति का संकेत भी है।
सारांश में, यदि भारत को वैश्विक व्यापार में मजबूत स्थान हासिल करना है तो उसे न केवल आयात पर निर्भरता घटानी होगी बल्कि नवाचार, विनिर्माण और निर्यात विविधीकरण को प्राथमिकता देनी होगी।
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