एक वरिष्ठ व्यापार विश्लेषक ने कहा है कि भारत और अमेरिका के बीच कोई भी व्यापारिक समझौता “कभी अंतिम नहीं होता”, इसलिए भारत को हर स्थिति में अपने राष्ट्रीय आर्थिक हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए। हाल ही में दोनों देशों के बीच चल रही वार्ताओं में कई मुद्दों पर उथल-पुथल और मतभेद देखने को मिले हैं, जिससे दोनों पक्षों के बीच भरोसे की परीक्षा हो रही है।
विश्लेषक ने बताया कि भारत को किसी भी बड़े समझौते से पहले अपने कृषि, औद्योगिक और डिजिटल सेवाओं जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, “अमेरिका अक्सर अपने घरेलू उद्योगों के हितों की रक्षा के लिए व्यापार नीतियों में अचानक बदलाव करता है, ऐसे में भारत को दीर्घकालिक रणनीति अपनानी होगी।”
सूत्रों के अनुसार, हाल के महीनों में अमेरिका द्वारा शुल्क दरों (tariffs) और तकनीकी साझेदारी को लेकर दिए गए संकेतों ने भारत की वार्ता रणनीति को प्रभावित किया है। भारत ने कई बार कहा है कि वह पारस्परिक सम्मान और पारदर्शिता के सिद्धांतों पर आधारित व्यापार साझेदारी चाहता है।
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नीति आयोग से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि भारत अब द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को “लचीले और परिवर्तनीय” रूप में देखने की नीति अपना रहा है, ताकि किसी भी अचानक बदलाव से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर न पड़े।
विश्लेषक ने अंत में कहा कि भारत को अब वैश्विक मंच पर एक “रणनीतिक और आत्मनिर्भर भागीदार” के रूप में अपनी पहचान मजबूत करनी चाहिए, न कि सिर्फ एक बाजार के रूप में।
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