लोकसभा में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास वर्मा को हटाने का प्रस्ताव जल्द ही चर्चा के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। यह प्रस्ताव विपक्षी दलों द्वारा समर्थित है और न्यायपालिका में जवाबदेही को लेकर एक बड़ा राजनीतिक और संवैधानिक मुद्दा बन गया है।
सूत्रों के अनुसार, राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा इस प्रस्ताव की जानकारी देना केवल एक औपचारिक प्रक्रिया थी, और इसे प्रस्ताव की स्वीकृति या प्रवेश के रूप में नहीं देखा जा सकता। संसदीय नियमों के अनुसार, किसी भी न्यायाधीश को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत संसद के दोनों सदनों में विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है।
इस प्रस्ताव में न्यायमूर्ति वर्मा पर कदाचार और कार्य के आचरण में गंभीर त्रुटियों के आरोप लगाए गए हैं। प्रस्ताव को संसदीय नियमों के तहत उचित समर्थन प्राप्त है, लेकिन यह अभी प्रारंभिक चरण में है और इसे संसदीय समिति को भेजे जाने की संभावना है जो इन आरोपों की जाँच करेगी।
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सरकार और विपक्ष के बीच इस मुद्दे को लेकर तीखी बहस की संभावना है, क्योंकि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विधायी प्रक्रिया की पारदर्शिता दोनों पर असर पड़ सकता है। प्रस्ताव की संवेदनशीलता को देखते हुए संसद में इसकी चर्चा पर देशभर की निगाहें टिकी होंगी।
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