सुप्रीम कोर्ट ने करूर भगदड़ मामले की जांच की निगरानी के लिए गठित की गई समिति में गैर-तमिलनाडु “मूल निवासी” पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति को उचित ठहराते हुए कहा कि इस फैसले के पीछे केवल निष्पक्षता सुनिश्चित करने की भावना है। शुक्रवार (12 दिसंबर, 2025) को अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में निष्पक्ष जांच के लिए ऐसा कदम आवश्यक था।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस समय की, जब तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा और पी. विल्सन पेश हुए। राज्य सरकार ने पर्यवेक्षण समिति के गठन में बदलाव की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि समिति के दो पुलिस अधिकारियों में से एक पहले एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी दल के पक्ष में पक्षपातपूर्ण रुख दिखा चुका है। इसके चलते सरकार ने इन अधिकारियों को समिति से हटाने की अपील की थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जांच की निगरानी केवल तभी विश्वसनीय होगी जब समिति में शामिल अधिकारी राज्य के राजनीतिक या प्रशासनिक प्रभाव से परे हों। अदालत ने कहा कि “हम चाहते हैं कि हर चीज निष्पक्ष हो,” और इसी सिद्धांत के आधार पर गैर-तमिलनाडु मूल के अधिकारियों की नियुक्ति की गई है।
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न्यायालय ने यह भी कहा कि करूर भगदड़ त्रासदी, जिसमें कई लोगों की जान गई, एक गंभीर मामला है और इसकी जांच में किसी भी तरह का संदेह या राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। अदालत ने दोहराया कि एक सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय न्यायाधीश की अगुवाई में बनी समिति को निष्पक्ष रूप से कार्य करने के लिए सभी आवश्यक स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
तमिलनाडु सरकार की आपत्तियों के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने समिति की संरचना को सही ठहराया और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने पर जोर दिया।
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