केरल, जिसे भारत में सबसे अधिक साक्षरता दर (100%) वाले राज्य के रूप में जाना जाता है, आज एक गंभीर आर्थिक चुनौती का सामना कर रहा है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्य में स्नातक युवाओं में बेरोजगारी दर 42% तक पहुंच गई है, जो देश में सबसे अधिक है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विरोधाभास शिक्षा और रोजगार के बीच गहरे असंतुलन को दर्शाता है। राज्य में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या तो अधिक है, लेकिन रोजगार सृजन की गति और उद्योगों की मांग के अनुसार कौशल विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि केरल में पारंपरिक शैक्षणिक पाठ्यक्रम पर जोर तो है, लेकिन व्यावसायिक प्रशिक्षण, तकनीकी शिक्षा और कौशल आधारित कार्यक्रमों की कमी के कारण स्नातकों को उपयुक्त नौकरियां नहीं मिल पा रही हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार, आईटी, पर्यटन, स्वास्थ्य और सेवा क्षेत्र में रोजगार के अवसर हैं, लेकिन वहां आवश्यक कौशल वाले स्नातकों की संख्या कम है। इसके चलते कई युवा राज्य से बाहर नौकरी की तलाश में पलायन कर रहे हैं।
विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि सरकार को शिक्षा नीति में बदलाव कर इसे उद्योग की आवश्यकताओं से जोड़ना चाहिए। साथ ही, स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने, उद्यमिता प्रशिक्षण और तकनीकी संस्थानों के विस्तार से रोजगार संकट को कम किया जा सकता है।
नीतिगत सुधारों और कौशल विकास योजनाओं के माध्यम से ही केरल इस विरोधाभास को दूर कर अपने युवाओं को शिक्षा के साथ-साथ बेहतर रोजगार अवसर प्रदान कर सकता है।
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