हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के लाघाट गांव में हर रात एक अनोखा दृश्य देखने को मिलता है। जब गांव के अधिकांश लोग ठंड से बचने के लिए अपने बिस्तरों में चले जाते हैं, तब गांव को राज्य राजमार्ग से जोड़ने वाली लिंक रोड पर टिमटिमाती रोशनियां दिखाई देने लगती हैं। ये रोशनियां लाघाट की उन महिलाओं की हैं, जो हाथों में मोबाइल की टॉर्च, लाठियां और दिल में नशे के बढ़ते खतरे को रोकने का मजबूत संकल्प लिए रात की पहरेदारी पर निकलती हैं।
लाघाट गांव बर्माणा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है, जो पंजाब की सीमा से सटी हुई है। राज्य सरकार ने इस पंचायत को हिमाचल प्रदेश की उन 234 पंचायतों में शामिल किया है, जो ‘चिट्टा’ नामक नशीले पदार्थ के सबसे अधिक प्रभाव में हैं। चिट्टा की बढ़ती समस्या ने ग्रामीणों की चिंता बढ़ा दी है, खासकर युवाओं को लेकर।
इसी चिंता के चलते हाल ही में 22 सदस्यीय लाघाट महिला मंडल ने नशे के खिलाफ मोर्चा संभालने का फैसला किया। महिलाओं का मानना है कि हाल में बनी नई लिंक रोड के कारण बाहरी तत्वों की आवाजाही बढ़ी है और इसी रास्ते से नशे की समस्या गांव तक पहुंची है। इसी को ध्यान में रखते हुए महिलाएं हर रात करीब 9 बजे से लेकर 1 बजे तक इस सड़क पर गश्त करती हैं।
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ठंड, अंधेरा और संभावित खतरे के बावजूद महिलाएं पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अगर वे अभी कदम नहीं उठाएंगी, तो आने वाली पीढ़ी नशे की गिरफ्त में चली जाएगी। महिला मंडल की इस पहल को गांव के कई लोगों का समर्थन भी मिल रहा है और इसे सामाजिक जागरूकता की एक मजबूत मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है।
लाघाट की ये महिलाएं साबित कर रही हैं कि जब समुदाय खुद जिम्मेदारी उठाता है, तो बड़े से बड़ा सामाजिक संकट भी चुनौती बन सकता है।
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