बिहार चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की करारी हार के बाद तेजस्वी यादव ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद लेने से इनकार कर दिया था। समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा कि वे इस चुनावी पराजय की पूरी जिम्मेदारी लेते हैं और अब एक साधारण विधायक के रूप में काम करना चाहते हैं। हालांकि, आरजेडी प्रमुख और उनके पिता लालू प्रसाद यादव के आग्रह पर उन्होंने विपक्ष के नेता की भूमिका निभाने के लिए अंततः सहमति दे दी।
2020 के चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली आरजेडी इस बार मात्र 25 सीटों पर सिमट गई, जो पिछले प्रदर्शन से 50 कम है। बैठक में तेजस्वी ने कहा कि आरजेडी उनके पिता द्वारा स्थापित पार्टी है और वे उन्हीं के निर्देश पर काम कर रहे हैं। कई वरिष्ठ नेताओं ने भी तेजस्वी के नेतृत्व पर भरोसा जताया और कहा कि वे उनके साथ हैं।
बैठक में तेजस्वी ने अपने करीबी सहयोगी और राज्यसभा सांसद संजय यादव का भी बचाव किया। चुनावी नतीजों के बाद संजय यादव का नाम परिवारिक विवादों में उछला था, विशेषकर तब जब तेजस्वी की बहन रोहिनी आचार्य ने उन पर “परिवार से बाहर करने” का आरोप लगाया। तेजस्वी ने कहा कि संजय को निशाना बनाना गलत है और वे आरजेडी की हार के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
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संजय यादव तेजस्वी के सबसे विश्वस्त रणनीतिकार माने जाते हैं, जो अभियान रणनीति तैयार करने से लेकर टिकट फाइनल करने तक में अहम भूमिका निभाते हैं। कई बार यह आरोप भी लगा कि संजय के कारण पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को तेजस्वी से मिलने में कठिनाई होती है।
रोहिनी आचार्य ने हाल ही में राजनीति छोड़ने और परिवार से दूरी बनाने की घोषणा की, जिसके पीछे उन्होंने संजय यादव और रमीज़ खान पर दबाव का आरोप लगाया। इस पर लालू प्रसाद यादव ने कहा कि यह “परिवार का आंतरिक मामला” है और इसे परिवार के भीतर ही सुलझाया जाएगा।
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