हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा के मानसून सत्र में राज्य सरकार ने महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक (Maharashtra Special Public Security Bill) पारित किया है। इस विधेयक का उद्देश्य वामपंथी उग्रवादी संगठनों और इसी प्रकार की अन्य गतिविधियों पर प्रभावी रोक लगाना है।
विधेयक के प्रावधानों के तहत सरकार को ऐसे संगठनों पर कार्रवाई करने और उन्हें अवैध घोषित करने का अधिकार दिया गया है, जो राज्य की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा माने जाते हैं। इसका मकसद ‘अर्बन नक्सल’ माने जाने वाले संगठनों के नेटवर्क को तोड़ना और राज्य में उग्रवाद को जड़ से खत्म करना है।
विधेयक पर विरोध:
हालांकि, इस विधेयक को विपक्षी दलों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं ने ‘दमनकारी’, ‘अस्पष्ट’ और ‘दुरुपयोग के लिए खुला’ बताया है। उनका कहना है कि सरकार इसे असहमति जताने वाली आवाजों को दबाने और राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
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अन्य राज्यों में समान कानून:
इस तरह के कानून पहले से ही छत्तीसगढ़, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में लागू हैं, जहां नक्सली गतिविधियां लंबे समय से चुनौती बनी हुई हैं।
मुख्य आपत्तियां:
- कानून की परिभाषाएं अस्पष्ट हैं, जिससे निर्दोष व्यक्तियों पर कार्रवाई हो सकती है।
- असहमति जताने वाले सामाजिक संगठनों को गलत तरीके से उग्रवादी करार दिया जा सकता है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का उल्लंघन होने का खतरा है।
इसके बावजूद, सरकार का दावा है कि यह विधेयक राज्य की आंतरिक सुरक्षा मजबूत करने और वामपंथी चरमपंथ को खत्म करने के लिए जरूरी कदम है। आने वाले समय में इस कानून के लागू होने से इसका वास्तविक प्रभाव सामने आएगा।
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